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A solar eclipse occurs when the moon gets between Earth and the sun, and the moon casts a shadow over Earth. A solar eclipse can only take place during the phase of the new moon, when the moon passes directly between the sun and Earth and its shadows fall upon Earth’s surface. But whether the alignment produces a total solar eclipse, a partial solar eclipse, or an annular solar eclipse depends on several factors, all explained below.
About Timelapse location videos
Earth Timelapse is a global, zoomable video that lets you see how our planet has changed since 1984. On this page, you'll find a curated selection of videos that highlight different types of planetary change, including urban expansion, mining impacts, river meandering, the growth of megacities, deforestation, and agricultural expansion.
How to use
Each location on the Timelapse videos page displays a preview thumbnail of the animation. Below the preview are buttons linking to the YouTube videos in 2D and 3D (if available). You’ll also find a download button; click to select from several formats available:
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2D, without labels: Available as an MP4 in 4K. The animation loops one time with no on-screen text.
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खण्डग्रास सूर्यग्रहण 25 अक्टूबर विशेष
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ग्रहण एक खगोलीय घटना है इसका वैज्ञानिक महत्व होने के साथ ही आध्यात्मिक रूप से भी बहुत महत्त्व माना गया है जगत के समस्त प्राणियों पर इसका किसी न किसी रूप में प्रभाव अवश्य पड़ता है।

कब लगता है सूर्यग्रहण
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जब पृथ्वी चंद्रमा व सूर्य एक सीधी रेखा में हों तो उस अवस्था में सूर्य को चंद्र ढक लेता है जिस सूर्य का प्रकाश या तो मध्यम पड़ जाता है या फिर अंधेरा छाने लगता है इसी को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
कितने प्रकार का होता है सूर्य ग्रहण
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पूर्ण सूर्य ग्रहण👉चंद्र जब सूर्य को पूर्ण रूप से ढक देता है और चारो दिशाओ में अंधेरा व्याप्त हो जाये तो इसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहा जायेगा।
खंडग्रास या आंशिक सूर्य ग्रहण👉 जब चंद्रमा सूर्य को पूर्ण रूप से न ढ़क पाये तो तो इस अवस्था को खंड ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी के अधिकांश हिस्सों में अक्सर खंड सूर्यग्रहण ही देखने को मिलता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण👉 वहीं यदि चांद सूरज को इस प्रकार ढके की सूर्य वलयाकार दिखाई दे यानि बीच में से ढका हुआ और उसके किनारों से रोशनी का छल्ला बनता हुआ दिखाई दे तो इस प्रकार के ग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
खगोलशास्त्र के अनुसार ग्रहण
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खगोल शास्त्रियों नें गणित से निश्चित किया है कि 18 वर्ष 18 दिन की समयावधि में 41 सूर्य ग्रहण और 29 चन्द्रग्रहण होते हैं। एक वर्ष में 5 सूर्यग्रहण तथा 2 चन्द्रग्रहण तक हो सकते हैं। किन्तु एक वर्ष में 2 सूर्यग्रहण तो होने ही चाहिए। हाँ, यदि किसी वर्ष 2 ही ग्रहण हुए तो वो दोनो ही सूर्यग्रहण होंगे। यद्यपि वर्षभर में 7 ग्रहण तक संभाव्य हैं, तथापि 4 से अधिक ग्रहण बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। प्रत्येक ग्रहण 18 वर्ष 11 दिन बीत जाने पर पुन: होता है। किन्तु वह अपने पहले के स्थान में ही हो यह निश्चित नहीं हैं, क्योंकि सम्पात बिन्दु निरन्तर चल रहे हैं।
संवत् 2079 कार्तिक कृष्ण अमावस्या 25 अक्टूबर 2022 मंगलवार को यह खण्डग्रास (आशिंक सूर्य ग्रहण) ग्रहण उत्तर-पूर्व भारत के कुछ हिस्सों (आईजोल, डिब्रूगढ़, इम्फाल ईटानगर, कोहिमा, शिवसागर, सिलचर, तामेलोंग) आदि स्थानों को छोड़ शेष भारत में दिखाई देगा। ग्रहण का अंत (मोक्ष) भारत में सुर्यास्त हो जाने के कारण दिखाई नहीं देगा। इस ग्रहण का सूतक 25 अक्टूबर 2022 के सूर्योदय से पहले रात्रि 02:25 बजे से आरम्भ हो जायेगा। सम्पूर्ण भारत (पूर्वी भारत को छोड़कर) यह ग्रहण ग्रस्तास्त होगा। इसलिये ग्रहण का पर्वकाल सूर्यास्त के साथ ही समाप्त हो जायेगा। इसलिये धार्मिक लोगों को सूर्यास्त के बाद स्नान करके सायं संध्या आदि करनी चाहिए लेकिन भोजन अगले दिन शुद्ध (ग्रहण मुक्त) सूर्य को देखने के बाद ही किया जायेगा। कार्तिक एवं मंगलवार (भौमवती अमावस होने से इस ग्रहण पर तीर्थस्नान, दान तर्पण, श्राद्ध आदि का अन्नत फल प्राप्त होगा।
ग्रहण प्रारम्भ दिन👉 दोप. 2 बजकर 25 मिनट से।
ग्रहण मध्य (परमग्रास)👉 सायं 4 बजकर 30 मिनट पर।
ग्रहण मोक्ष (समाप्त) 👉 सायं 6 बजकर 35 मिनट पर।
विशेष👉 ग्रहण काल के सूतक से पहले सभी कच्ची (बिना पकी हुई खाद्य सामग्री मे) कुशा रखे तथा पकी हुई खाद्य सामग्री को जीव जंतुओ को डाल दें। ग्रहण काल मे जाप एवं दान आदि का अनन्त फल मिलता है इसलिए ज्यादा से ज्यादा जप एवं सामर्थ्य अनुसार दान आदि अवश्य करें।
ग्रहणकाल मे करने योग्य पौराणिक विचार
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हमारे ऋषि-मुनियों ने सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन के लिए मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में कीटाणु बहुलता से फैल जाते हैं। खाद्य वस्तु, जल आदि में सूक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिए ऋषियों ने पात्रों के कुश डालने को कहा है, ताकि सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है ताकि कीटाणु मर जाएं। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिए बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊष्मा का प्रवाह बढ़े, भीतर-बाहर के कीटाणु नष्ट हो जाएं और धुल कर बह जाएं।
पुराणों की मान्यता के अनुसार राहु चंद्रमा को तथा केतु सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों ही छाया की संतान हैं। चंद्रमा और सूर्य की छाया के साथ-साथ चलते हैं। चंद्र ग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है और मन की शक्ति क्षीण होती है, जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमज़ोर पड़ती है। गर्भवती स्त्री को सूर्य-चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन सकता है, गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु-केतु उसका स्पर्श न करें। ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को कुछ भी कैंची या चाकू से काटने को मना किया जाता है और किसी वस्त्रादि को सिलने से रोका जाता है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं।
ग्रहण लगने के पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए। भजन-कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें। ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें। ग्रहण के समय में मंत्रों का जाप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, केश विन्यास बनाना, रति-क्रीड़ा करना, मंजन करना वर्जित किए गए हैं। कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्नान करते हैं। ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राह्मण को दान देने का विधान है। कहीं-कहीं वस्त्र, बर्तन धोने का भी नियम है। पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पिया जाता है। ग्रहण के बाद डोम (शमशान में मृतिक क्रिया करने वाले व्यक्ति) को दान देने का अधिक महात्म्य बताया गया है, क्योंकि डोम को राहु-केतु का स्वरूप माना गया है।
सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये। बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्देश्य करके जल में जल डाल देना चाहिए। ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये।
सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा
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सूर्यग्रहण के दौरान घट चुकी है ये घटनाएं
मत्स्य पुराण के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान, निकले अमृत को राहू- केतु ने छीन लिया था, तब से ग्रहण की कथा, इतिहास चला आ रहा है।
द्रौपदी के अपमान का दिन सूर्य ग्रहण का था।
महाभारत का 14वां दिन, सूर्य ग्रहण का था और पूर्ण ग्रहण पर अंधेरा होने पर जयद्रथ का वध किया गया।
जिस दिन श्री कृष्ण की द्वारिका डूबी वह भी सूर्य ग्रहण का दिन था
सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा
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मत्स्यपुराण की कथानुसार, समुद्र मंथन और सूर्य ग्रहण का पौराणिक संबंध है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण के पीछे राहु-केतु जिम्मेदार होते हैं। इन दो ग्रहों की सूर्य और चंद्र से दुश्मनी बताई जाती है। यही वजह है कि ग्रहण काल में कोई भी कार्य करने की सलाह नहीं दी जाती है। इस दौरान राहु-केतु का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है। इन दो ग्रहों के बुरे प्रकोप से बचने के लिए ही सूतक लगते हैं। ग्रहण के दौरान मंदिरों तक में प्रवेश निषेध होता है। मान्यता है कि ग्रहण में इन ग्रहों की छाया मनुष्य के बनते कार्य बिगाड़ देती है। शास्त्रों में ग्रहण काल में कोई शुभ कार्य तो दूर सामान्य क्रिया के लिए भी मनाही है। इस ग्रहण के लगने के पीछे एक पौराणिक कथा है।
जब दैत्यों ने तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था तब देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी थी। तीनों लोक को असुरों से बचाने के लिए भगवान विष्णु का आह्वान किया गया था। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को क्षीर सागर का मंथन करने के लिए कहा और इस मंथन से निकले अमृत का पान करने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने देवताओं को चेताया था कि ध्यान रहे अमृत असुर न पीने पाएं क्योंकि तब इन्हें युद्ध में कभी हराया नहीं जा सकेगा।
भगवान के कहे अनुसार देवताओं ने क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया। समुद्र मंथन से निकले अमृत को लेकर देवता और असुरों में लड़ाई हुई। तब भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर एक तरफ देवता और एक तरफ असुरों को बिठा दिया और कहा कि बारी-बारी सबको अमृत मिलेगा। यह सुनकर एक असुर देवताओं के बीच वेश बदल कर बैठ गया, लेकिन चंद्र और सूर्य उसे पहचान गए और भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दी, लेकिन तब तक भगवान उसे अमृत दे चुके थे। अमृत गले तक पहुंचा था कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से असुर के धड़ को सिर से अलग कर दिया, लेकिन तब तक उसने अमृतपान कर लिया था। हालांकि, अमृत गले से नीच नहीं उतरा था, लेकिन उसका सिर अमर हो गया। सिर राहु बना और धड़ केतु के रूप में अमर हो गया। भेद खोलने के कारण ही राहु और केतु की चंद्र और सूर्य से दुश्मनी हो गई। कालांतर में राहु और केतु को चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र से द्वेष की भावना रखते हैं, जिससे ग्रहण पड़ता है।
⭐ *Surya Grahan 2022* : વર્ષનું બીજું અને છેલ્લું સૂર્યગ્રહણ આજે એટલે કે 25 ઓક્ટોબર 2022ના લાગવા જઈ રહ્યું છે. સૂર્યગ્રહણનો સુતકકાળ ગ્રહણના 12 કલાક પહેલા શરૂ થઈ જાય છે. ભારતમાં પણ આ સૂર્યગ્રહણને જોઈ શકાશે. જ્યોતિષમાં ગ્રહણને અશુભ ઘટનાઓમાં ગણવામાં આવે છે. આ કારણે ગ્રહણ દરમિયાન શુભ કાર્ય અને પૂજા વર્જિત માનવામાં આવે છે. એવું માનવામાં આવે છે કે, સૂર્યગ્રહણ દરમિયાન સૂર્ય પીડિત થઈ જાય છે, જેના કારણે સૂર્યની શુભતામાં ઘટાડો થઈ જાય છે. ચાલો જાણીએ સૂર્યગ્રહણનો સમય
સૂર્યગ્રહણનો સમય
ભારતમાં આ સૂર્યગ્રહણ બપોરે 2:29 વાગ્યે શરૂ થશે અને લગભગ 4 કલાક અને 3 મિનિટ સુધી ચાલશે. આ વખતે સૂર્યાસ્ત પછી પણ ગ્રહણ હશે. ગ્રહણ સાંજે 6.32 કલાકે સમાપ્ત થશે.
ભારતમાં આ સ્થળોએ દેખાશે સૂર્યગ્રહણ
આ આંશિક સૂર્યગ્રહણ મુખ્યત્વે યુરોપ, ઉત્તર-પૂર્વ આફ્રિકા અને પશ્ચિમ એશિયાના કેટલાક ભાગોમાંથી દેખાશે. ભારતમાં આ ગ્રહણ નવી દિલ્હી, બેંગ્લોર, કોલકાતા, ચેન્નાઈ, ઉજ્જૈન, વારાણસી, મથુરામાં જોવા મળશે, એવું પણ કહેવામાં આવી રહ્યું છે કે, આ સૂર્યગ્રહણને પૂર્વ ભારત સિવાય આખા ભારતમાં જોઈ શકાશે.
અહીં લાઈવ જોઈ શકાશે સૂર્યગ્રહણ
NASA અને Timeanddate.com બંનેએ સૂર્યગ્રહણ માટે લાઇવ સ્ટ્રીમ લિંક બહાર પાડી છે. આના દ્વારા વિશ્વભરના લોકો આ અદ્ભુત અવકાશી ઘટનાને જોઈ શકશે.
સૂર્યગ્રહણની રાશિઓ પર અસર
વર્ષના આ છેલ્લા સૂર્યગ્રહણની અસર વિવિધ રાશિઓ પર પડશે. મેષ, વૃષભ અને મિથુન રાશિના જાતકો પર સૂર્યગ્રહણની ખરાબ અસર જોવા મળશે. કર્ક રાશિના જાતકોને આ સમયગાળા દરમિયાન ધનલાભ થશે. કન્યા રાશિના જાતકોને આ સમયગાળામાં નુકસાન થઈ શકે છે. વૃશ્ચિક રાશિના જાતકોને ધનની હાની થવાની સંભાવના છે અને ધન રાશિના જાતકોને આ સમયગાળા દરમિયાન લાભ થશે.
⭐ *સૂર્યગ્રહણનું સુતકકાળ ક્યારથી શરૂ થશે ?*
ભારતમાં આંશિક સૂર્યગ્રહણ લાગવાનું છે જેના લીધે સૂતકકાળ પણ લાગુ પડશે. ધાર્મિક દ્રશ્ટિકોણથી જોઇએ તો સુતક કાળ ક્યારેય પણ શુભ માનવામાં આવતો નથી. આ કાળમાં પુજા-પાઠ વર્જ્ય હોય છે. હિન્દુ પંચાગ અનુસાર 25 ઓક્ટોબરનું સૂર્યગ્રહણ સાંજે 4 વાગ્યાની આસપાસ શરૂ થશે. સુતકકાળ ગ્રહણ શરૂ થવાના 12 કલાક પહેલા જ શરૂ થાય છે અને આશરે 1.5 કલાક સુધી ચાલે છે.
⭐ *સૂર્યગ્રહણ પર શું કરવું અને શું ન કરવું?*
- આ દરમિયાન વૃદ્ધો, ગર્ભવતી મહિલાઓ અને બાળકો સિવાય તમામ લોકોએ સૂવાનું, ખાવા-પીવાનું ટાળવું જોઈએ. આખા ગ્રહણ દરમિયાન ગર્ભવતી મહિલાઓએ ખાસ કરીને એક જગ્યાએ બેસવું જોઈએ. સાથે જ બેસીને હનુમાન ચાલીસા વગેરેનો પાઠ પણ કરી શકે છે. તેનાથી ગ્રહણની અસર તેમના પર બિનઅસરકારક રહેશે.
- આકાશમાં થનારી આ ખગોળીય ઘટનાને ક્યારેય નરી આંખે ન જોવી જોઈએ કારણ કે સૂર્યના કિરણો આંખોને નુકસાન પહોંચાડી શકે છે. સૂર્યગ્રહણને ટેલિસ્કોપથી પણ ન જોવું જોઈએ. આને જોવા માટે ખાસ બનાવેલા ચશ્માનો જ ઉપયોગ કરવો જોઈએ.
- ગ્રહણકાળ દરમિયાન ચાકૂ, છરી જેવી તીક્ષ્ણ ધારવાળી વસ્તુઓનો ઉપયોગ કરશો નહીં. આ દરમિયાન ખોરાક અને પાણીનું સેવન કરવાનું પણ ટાળો.
- ગ્રહણ દરમિયાન સ્નાન અને પૂજા ન કરો, આ કાર્યોને ગ્રહણકાળમાં શુભ માનવામાં આવતા નથી. આ દરમિયાન તમે આદિત્ય હૃદય સ્તોત્રનો પાઠ કરી શકો છો.
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